नहीं थम रहा परकोटे पर अतिक्रमण : जयपुर की धरोहर संकट में!
जयपुर, जिसे भारत का गुलाबी शहर कहा जाता है, केवल अपनी खूबसूरत हवेलियों, किलों और परंपराओं के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी ऐतिहासिक धरोहरों और धार्मिक स्थलों के लिए भी मशहूर है। लेकिन अब इस शहर की सांस्कृतिक पहचान पर सवाल खड़े हो रहे हैं। वजह है, परकोटे की ऐतिहासिक दीवारों से सटे क्षेत्रों में अतिक्रमण और अवैध निर्माण।
मंदिर के पास अवैध निर्माण: जिम्मेदार कौन?
इंद्रा बाजार स्थित ट्रस्ट बगीची श्री जगराम दास महाराज का मंदिर—एक ऐसा स्थल, जहां भक्तगण अपनी आस्था के साथ आते थे। यह मंदिर केवल एक पूजा स्थल नहीं है, बल्कि जयपुर की ऐतिहासिक परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है। लेकिन आज इसके पास अवैध कॉमर्शियल निर्माण हो रहा है। रहवासी क्षेत्र में मंदिर की पवित्रता के साथ खिलवाड़ कर वहां व्यवसायिक इमारतें खड़ी की जा रही हैं।
रसूख और सरकारी अनदेखी का गठजोड़!
मामला सिर्फ अवैध निर्माण तक सीमित नहीं है। सवाल यह है कि ऐसे निर्माण को बढ़ावा कौन दे रहा है? स्थानीय प्रशासन, नगर निगम हेरिटेज के अधिकारी और रसूखदारों का गठजोड़ इन अवैध कार्यों को अंजाम दे रहा है!
सामाजिक कार्यकर्ताओं और स्थानीय नागरिकों ने कई बार आवाज उठाई, लेकिन जब अधिकारियों और स्थानीय विधायकों की मिलीभगत हो, तो कोई भी आवाज दबा दी जाती है।
कहा जाता है,
"जो मंदिर को छोड़, व्यापार को चुनते हैं,
वो आस्था की रोशनी को भी अंधेरों में ढूंढ़ते हैं।"
जयपुर की धरोहर पर चोट?
परकोटा—जयपुर की शान, जिसकी दीवारें इस शहर के इतिहास की गवाह हैं। परकोटे के साथ ऐसा दुर्व्यवहार न केवल हमारी विरासत का अपमान है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए धरोहरों को खोने का खतरा भी।
क्या कहता है कानून?
राजस्थान हाईकोर्ट ने परकोटे के पास किसी भी तरह के अवैध निर्माण और व्यावसायिक गतिविधियों पर रोक लगाने का आदेश दिया है। इसके बावजूद, मंदिर की भूमि के पास अवैध निर्माण जारी है। यह साफ दर्शाता है कि प्रशासन और जिम्मेदार अधिकारी नियमों की धज्जियां उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे।
श्रद्धालुओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं का विरोध!
मंदिर और परकोटे को बचाने के लिए कई श्रद्धालु और सामाजिक कार्यकर्ता विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह केवल धार्मिक स्थल का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह हमारी पहचान और परंपरा की रक्षा का सवाल है।
एक श्रद्धालु ने कहा:
"यह मंदिर केवल पूजा का स्थान नहीं है। यह हमारी संस्कृति और परंपरा का हिस्सा है। इसे बचाना हमारी जिम्मेदारी है।"
सामाजिक कार्यकर्ता बोले:
"सरकार और प्रशासन को सोचना होगा कि अगर वे धरोहरों को नहीं बचाएंगे, तो जयपुर की पहचान क्या रह जाएगी?"
दर्शकों से सवाल:
"क्या आपको लगता है कि मंदिरों के पास इस तरह का अवैध निर्माण हमारी धरोहर और भविष्य के लिए खतरा है?"
हां
नहीं
हमें अपने कमेंट्स में बताएं और अपनी राय साझा करें।
आस्था बनाम रसूख: जयपुर की कहानी!
जयपुर में यह पहली बार नहीं हो रहा। मंदिरों और धरोहरों को लेकर ऐसी घटनाएं आम हो चुकी हैं। मंदिरों की पवित्रता को खत्म कर वहां व्यवसायिक गतिविधियों को बढ़ावा देना हमारी संस्कृति और परंपराओं पर हमला है।
सरकार, जो खुद को धर्म और संस्कृति की रक्षक बताती है, उसकी चुप्पी सबसे ज्यादा चौंकाती है। जब भगवान का घर ही सुरक्षित नहीं, तो भक्तों का क्या होगा?
कहते हैं, आस्था वो दीप है, जो तूफानों में भी नहीं बुझता। लेकिन जयपुर के परकोटे और मंदिरों की आस्था, रसूखदारों और अधिकारियों की अनदेखी से दम तोड़ रही है। यह केवल मंदिर का सवाल नहीं, यह हमारी संस्कृति, हमारी धरोहर और हमारी पहचान का सवाल है।"
जिस परकोटे पर जयपुर को नाज़ था,
आज उसी पर अतिक्रमण का राज था।
मंदिर की भूमि, जहां भक्ति फलती थी,
अब वहां व्यापार की फसल चलती थी।