क्या सोशल मीडिया पोस्ट देशद्रोह है? प्रोफेसर की गिरफ्तारी और सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी

क्या भारत में अभिव्यक्ति की आज़ादी खतरे में है? या फिर उसकी एक संवैधानिक सीमा होनी चाहिए? सुप्रीम कोर्ट की एक हालिया टिप्पणी ने इस सवाल को देशभर की बहस का केंद्र बना दिया है। ये मामला सिर्फ एक प्रोफेसर की गिरफ्तारी तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि भारत की न्यायपालिका के भविष्य के दृष्टिकोण की ओर भी इशारा करता है।
मामला क्या है?
18 मई 2025 — हरियाणा पुलिस ने अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को गिरफ्तार किया। आरोप था कि उन्होंने "ऑपरेशन सिंदूर" और उसमें शामिल महिला सैन्य अधिकारियों – कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह – पर एक आपत्तिजनक सोशल मीडिया पोस्ट किया।
पोस्ट में प्रोफेसर ने लिखा था:
"जो लोग महिला सैन्य अफसरों की बहादुरी का जश्न मना रहे हैं, क्या वे मॉब लिंचिंग और बुलडोजर राजनीति पर भी सवाल उठाएंगे?"
इस पोस्ट को लेकर आरोप लगे कि ये राष्ट्रविरोधी, सांप्रदायिक तनाव भड़काने वाला और सुरक्षा बलों का अपमान है।
छात्रों और शिक्षकों का विरोध, मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा
गिरफ्तारी के बाद अशोका यूनिवर्सिटी के छात्रों और फैकल्टी ने विरोध प्रदर्शन किए। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन.के. सिंह की बेंच ने सुनवाई की।
जस्टिस सूर्यकांत की टिप्पणी – अधिकार के साथ कर्तव्य भी ज़रूरी
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने कहा:
"हर किसी को अभिव्यक्ति की आज़ादी है... लेकिन क्या ये समय ऐसे मुद्दे उठाने का है जब देश आतंकवाद से जूझ रहा है?"
उन्होंने आगे कहा:
"लोग अधिकारों की बात करते हैं, लेकिन देश के प्रति कर्तव्यों की चर्चा क्यों नहीं होती?"
उन्होंने प्रोफेसर की भाषा को "Dog Whistling" बताया – यानी ऐसी भाषा जो किसी खास वर्ग को उकसाने के लिए जानबूझकर इस्तेमाल की जाती है।
क्या कहा कोर्ट ने प्रोफेसर को लेकर?
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प्रोफेसर को ज़मानत दी जा सकती है, लेकिन जांच बंद नहीं होगी
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SIT बनाकर मामले की विस्तृत जांच के आदेश
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कोर्ट ने कहा:
"आप विद्वान हैं, आपकी भाषा में संयम होना चाहिए। विचार आप वही रखें, लेकिन शब्द मर्यादित हों।"
क्या ये सिर्फ एक गिरफ्तारी है, या एक बड़ा संदेश?
यह फैसला उस दिशा की ओर इशारा कर रहा है जहां आने वाले समय में अभिव्यक्ति की आज़ादी बनाम राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच की रेखा और स्पष्ट की जा सकती है।
याद दिला दें, जस्टिस सूर्यकांत वरिष्ठता के आधार पर नवंबर 2025 से भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश (CJI) बनने जा रहे हैं। ऐसे में उनकी यह सोच आने वाले वर्षों में न्यायपालिका की प्राथमिकताओं को दर्शा सकती है — जहां अधिकार के साथ जिम्मेदारी भी उतनी ही अहम होगी।