Wakf कानून के विरोध ने मुर्शिदाबाद को बनाया हिंसा का अखाड़ा

वक्फ कानून के विरोध में शुरू हुआ प्रदर्शन शुक्रवार को पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में भयानक हिंसा में तब्दील हो गया। नमाज़ के बाद सड़कों पर उतरी भीड़ ने सूती और शमशेरगंज जैसे इलाकों को आतंक और तबाही की भट्ठी बना डाला। आगजनी, पथराव, तोड़फोड़ और लूटपाट के साथ-साथ कई हिंदू परिवारों को निशाना बनाया गया। हालात इतने बिगड़ गए कि पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा और अंततः BSF की तैनाती करनी पड़ी।
प्रदर्शनकारियों ने नेशनल हाईवे 34 और 12 पर जाम लगा दिया। पुलिस वैन पर हमला किया गया, गाड़ियों को फूंक दिया गया और रेलवे स्टेशन को भी नहीं बख्शा गया। सबसे हैरान करने वाली घटना तब हुई जब एक एंबुलेंस को आग के हवाले कर दिया गया और अंदर फंसे ड्राइवर को भीड़ ने बेरहमी से पीटा। गनीमत रही कि समय रहते उसे मौत के मुंह से बाहर निकाल लिया गया।
इस हिंसा का सबसे भयावह पहलू था, हिंदू परिवारों को चुन-चुन कर निशाना बनाया जाना। घरों में घुसकर तोड़फोड़ की गई, महिलाएं और बच्चे घरों की छतों पर जान बचाकर छिपे रहे। मंजू भगत नामक महिला छत पर खड़ी होकर ईश्वर से रोते हुए सवाल कर रही थीं — “अगर मेरी बेटियों के साथ कुछ हो जाता, तो कौन जिम्मेदार होता?”
स्थानीय निवासियों का आरोप है कि पुलिस थाने की दूरी महज कुछ मीटर थी, लेकिन जब फोन किया गया तो किसी ने कॉल तक रिसीव नहीं की। इस चुप्पी और निष्क्रियता ने हालात को और भयानक बना दिया।
फिलहाल प्रशासन का दावा है कि हालात पर नियंत्रण पा लिया गया है, लेकिन जिन घरों में मातम पसरा है, जहां डर ने डेरा डाल लिया है — उनके लिए ये सिर्फ एक ‘काबू’ नहीं, बल्कि एक काली याद बन चुकी है।
क्या यह स्वीकार्य है कि एक लोकतांत्रिक देश में कानून के विरोध के नाम पर हिंसा, अराजकता और जातीय टारगेटिंग हो?
विरोध करना संविधान प्रदत्त अधिकार है, लेकिन जब यह विरोध नफरत, हिंसा और इंसानियत की हत्या में बदल जाए, तब उसका सबसे बड़ा नुकसान हमेशा आम नागरिक को ही उठाना पड़ता है।