आधी रात का आतंक : क्या आम आदमी अब अपने घर में भी सुरक्षित नहीं? 

आधी रात का आतंक : क्या आम आदमी अब अपने घर में भी सुरक्षित नहीं? 

जब घर के आंगन में सुकून की नींद लेना भी जानलेवा हो जाए, तो समझ लीजिए कि कानून का राज खत्म हो चुका है। टोंक जिले के बरौनी थाना क्षेत्र के गोरधनपुरा गांव में जो हुआ, वो केवल एक अपराध नहीं, बल्कि सरकार और पुलिस प्रशासन की लापरवाही का काला धब्बा है। आधी रात को स्कॉर्पियो और बोलेरो में सवार होकर आए 8-10 लोगों ने सोते हुए परिवार पर जानलेवा हमला किया। इस घटना में सुरज्ञान गुर्जर, मेघराज, कवरी देवी और द्वारकीय गंभीर रूप से घायल हो गए।  

जरा सोचिए, घर की चारदीवारी में सोते हुए लोग भी अब सुरक्षित नहीं हैं। आखिर आम आदमी जाए तो जाए कहां?  

सरकार के वादे: बस खोखले दावे?
राजस्थान सरकार "जनसुनवाई" और "जनसुरक्षा" के बड़े-बड़े वादे करती है। पर ये वादे गोरधनपुरा के उस परिवार के लिए किसी मजाक से कम नहीं। नादान गुर्जर, जो खुद इस दर्दनाक घटना का गवाह है, ने बताया कि कुछ महीने पहले उनकी बेटी का अपहरण हुआ था। अपराधी न केवल उसे वापस छोड़ गए, बल्कि धमकियां भी देने लगे। सवाल यह है कि पुलिस प्रशासन ने इस मामले को गंभीरता से क्यों नहीं लिया? अगर उस वक्त सख्त कदम उठाए जाते, तो शायद आज यह हमला नहीं होता।  

पुलिस की भूमिका: अपराध रोकने में या बढ़ाने में?
बरौनी पुलिस ने घटना के बाद दो आरोपियों, ज्ञानचंद गुर्जर और कालू, को गिरफ्तार किया। उनके पास से एक स्कॉर्पियो और हथियार भी जब्त किए गए। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इन अपराधियों को इतनी हिम्मत आखिर मिली कैसे? क्या पुलिस की नाक के नीचे ऐसे अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं? या फिर पुलिस केवल घटना के बाद दिखावे के लिए कार्रवाई करती है?  

जनता का दर्द: कौन सुनेगा उनकी पुकार?
गोरधनपुरा के लोगों का कहना है कि उनकी सुरक्षा के लिए कोई भी कदम नहीं उठाए जाते। झिलाय स्वास्थ्य केंद्र में घायल लोगों का इलाज चल रहा है, जिन्हें बाद में टोंक रेफर कर दिया गया। उनकी चीखें, उनकी तकलीफ, क्या किसी सरकारी अधिकारी को सुनाई दे रही है?  

सरकार से सवाल: क्या यही रामराज्य है?
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनकी सरकार लगातार "शांति और सुरक्षा" की बातें करते हैं। पर गोरधनपुरा जैसी घटनाएं इन दावों की पोल खोल देती हैं। क्या यह वही "रामराज्य" है, जिसका सपना दिखाया गया था? जहां अपराधी बेखौफ होकर गांव में घुसकर लोगों पर हमला कर देते हैं और प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा रहता है?  

अंतहीन सवाल, जवाब कौन देगा?
1. पुलिस को अपराध की जानकारी पहले से थी, तो कार्रवाई क्यों नहीं की गई?  
2. ऐसे अपराधियों को शह कौन दे रहा है?  
3. पीड़ित परिवारों की सुरक्षा की गारंटी कौन लेगा?  
4. क्या इस मामले में भी "जांच जारी है" कहकर इसे रफा-दफा कर दिया जाएगा?  

आम आदमी की सुरक्षा पर मंडराते सवाल
गोरधनपुरा की घटना केवल एक गांव की नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की नाकामी है। ये घटना हर उस परिवार के लिए चेतावनी है, जो यह सोचता है कि उसका घर सुरक्षित है। आज नादान गुर्जर का परिवार घायल है, कल ये हादसा आपके घर के दरवाजे पर भी दस्तक दे सकता है।  

सरकार और पुलिस प्रशासन को जवाब देना होगा। वरना वो दिन दूर नहीं जब आम जनता का विश्वास पूरी तरह खत्म हो जाएगा। जब कानून कमजोर और अपराधी ताकतवर हो जाएं, तो न्याय की उम्मीद करना ही सबसे बड़ा मजाक बन जाता है।