Mirzapur के ग्रामीणों की चेतावनी – खुद को जिंदा जलाएंगे

मिर्जापुर - “हमारी ज़मीन चली गई, मुआवजा भी नहीं मिला... अब दो वक्त की रोटी के भी पैसे नहीं हैं। अगर यही हाल रहा तो आत्महत्या करनी पड़ेगी।” — ये दर्दभरे शब्द हैं ददरी खुर्द गांव की जड़ावती देवी के, जिनकी ज़मीन पर अब थर्मल पावर प्लांट बन रहा है और वे अपने बच्चों को भरपेट खाना तक नहीं खिला पा रहीं।
मिर्जापुर के इस गांव में 120 से अधिक ग्रामीणों ने प्रशासन के सामने खुद को ज़िंदा जलाने की चेतावनी दी है। ग्रामीणों का आरोप है कि उनकी जमीनें जबरन, डर और दबाव में औने-पौने दामों पर ली गईं। साल 2011 में वेलस्पन कंपनी को जंगलों के पास थर्मल पावर प्लांट बनाने की मंजूरी दी गई थी।
नौकरी और मुआवजे के वादे अधूरे
उस समय प्रशासन ने दावा किया था कि हर परिवार से एक व्यक्ति को नौकरी दी जाएगी और उचित मुआवजा मिलेगा। लेकिन 13 साल बाद, ग्रामीणों के पास न जमीन बची, न नौकरी मिली और न ही न्याय।
हालात तब और बिगड़े जब 2016 में NGT (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) ने पर्यावरणीय खतरे के चलते इस प्रोजेक्ट पर रोक लगा दी। इसके बावजूद 2024 में अडाणी ग्रुप ने 400 करोड़ रुपए में इस अधूरे प्रोजेक्ट को टेकओवर कर लिया और ग्रामीणों के अनुसार, बिना नई पर्यावरणीय मंजूरी के काम शुरू कर दिया गया।
जनसुनवाई बनी मज़ाक?
ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि नई जनसुनवाई एक “कागज़ी ड्रामा” थी। “हमें बुलाया ही नहीं गया, अफसरों और कंपनी के लोगों ने आपस में मीटिंग की और कह दिया कि लोगों की सहमति मिल गई,” एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया।
जंगल, पर्यावरण और जीव-जंतु भी संकट में
ग्रामीणों और पर्यावरणविदों का मानना है कि जिस क्षेत्र को 1952 में संरक्षित वन क्षेत्र घोषित किया गया था, वहां थर्मल प्लांट बनने से वन्यजीव समाप्त हो जाएंगे और पानी का संकट भी विकराल होगा।
एक स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा, "अगर यह प्लांट बन गया तो अगले 10 वर्षों में इस पूरे इलाके से जानवर गायब हो जाएंगे।"
कंपनी की सफाई
इस बीच, अडाणी ग्रुप के अधिकारी दिनेश सिंह ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया। उन्होंने कहा, “जो जमीन 2011 में बिक चुकी है, उसका दोबारा मुआवजा नहीं दिया जा सकता। विरोध कर रहे लोग गुंडागर्दी कर रहे हैं।”
इस बयान ने ग्रामीणों में और आक्रोश पैदा कर दिया है। “क्या भूख से तड़पते लोगों को आप गुंडा कहेंगे?” एक बुजुर्ग किसान ने मीडिया से कहा।
अगली सुनवाई 15 जुलाई को
15 जुलाई को NGT में इस मामले की अगली सुनवाई तय की गई है। तब तक निर्माण कार्य जारी है और ग्रामीण रोज़ प्रदर्शन कर रहे हैं।
यह मामला सिर्फ ज़मीन और मुआवजे का नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण, वन्य जीवन की रक्षा और ग्रामीण अधिकारों के संरक्षण का भी है।