वेतन विसंगतियों का अंतहीन सफर: कमेटियों का खेल और कर्मचारियों की मायूसी!

वेतन विसंगतियों का अंतहीन सफर: कमेटियों का खेल और कर्मचारियों की मायूसी!


राजस्थान के लैब टेक्नीशियन, रेडियोग्राफर और अन्य पैरामेडिकल स्टाफ के लिए वेतन विसंगतियों का मुद्दा एक दशक पुराना दर्द बन चुका है। हर बार सरकार नई कमेटी गठित करती है, हर बार रिपोर्ट तैयार होती है, और अंत में कर्मचारियों को सिर्फ मायूसी मिलती है। खेमराज कमेटी और डीसी सावंत कमेटी के नाम पर कर्मचारियों को उम्मीदें दी गईं, लेकिन इन कमेटियों की सिफारिशें आज भी केवल छलावा साबित हो रही हैं। इस बार, बिना रिपोर्ट सार्वजनिक किए ही वित्त विभाग के आदेशों ने पुराने जख्म फिर से हरे कर दिए हैं।  

कमेटियों की कहानी: उम्मीद से मायूसी तक

लैब टेक्नीशियन संघ के प्रदेश अध्यक्ष जितेंद्र सिंह ने खेमराज कमेटी पर आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा कि ये कमेटियां कर्मचारियों के लिए सिर्फ मृगमरीचिका साबित होती हैं। डीसी सावंत कमेटी और खेमराज कमेटी जैसे नाम, जो 10 सालों तक कर्मचारियों की पीड़ा के निवारण के नाम पर चर्चा में रहे, केवल खर्चे और छलावे का जरिया बने।  
         संघ के अन्य सदस्यों ने सवाल उठाया कि रिपोर्ट को सार्वजनिक किए बिना उसे लागू करना कर्मचारियों के साथ अन्याय है। मीडिया प्रभारी संतोष शर्मा ने इसे कर्मचारियों के धैर्य की परीक्षा बताते हुए कहा कि "सरकार सिर्फ कमेटी का नाम बदलती है, लेकिन कहानी वही रहती है।"  

लैब टेक्नीशियनों की मांगें: अन्याय का प्रमाण
लैब टेक्नीशियन संघ ने बार-बार अपने दस्तावेज पेश किए और अन्य राज्यों से तुलनात्मक आंकड़े भी दिखाए।  
- हरियाणा में 10वीं पास और 9 महीने की ट्रेनिंग के आधार पर 4200 ग्रेड पे दी जाती है।  
- राजस्थान में 12वीं साइंस, 3 साल की डिग्री और 2 साल के डिप्लोमा के बावजूद 2800 ग्रेड पे दी जा रही है।  
यह भेदभाव केवल अन्याय को दर्शाता है।  

वित्त विभाग का फैसला: कहानी फिर से वही
कमेटी ने माना कि लैब टेक्नीशियनों के साथ न्याय नहीं हुआ, लेकिन वित्त विभाग के आदेशों ने सारी उम्मीदें खत्म कर दीं। कर्मचारियों का कहना है कि ये फैसला ऊंट के मुंह में जीरे जैसा है, और इसे स्वीकार करना बेहद कठिन है।  

संघ की आवाज़: दर्द और आक्रोश  
संघ के कोषाध्यक्ष मोहन सिंह राजावत और महामंत्री तरुण सैनी ने बताया कि कर्मचारियों ने कमेटी द्वारा मांगी गई हर जानकारी मुहैया कराई, फिर भी उनकी मांगें अनसुनी रह गईं। हाई रिस्क संक्रमण के बीच काम करने वाले पैरामेडिकल स्टाफ के "नेचर ऑफ जॉब" को नजरअंदाज किया गया।  
        लैब टेक्नीशियनों का कहना है कि वेतन विसंगति का यह मुद्दा अब उनकी गरिमा और मेहनत के खिलाफ हो चुका है। वे संक्रमण के जोखिम में काम करते हैं, लेकिन सरकार ने उनकी भूमिका और योगदान को कभी गंभीरता से नहीं लिया।  
        मीडिया प्रभारी संतोष शर्मा ने चेतावनी दी कि अगर सरकार जल्द ही इस समस्या का समाधान नहीं करती, तो कर्मचारियों का आक्रोश बड़ा आंदोलन बन सकता है।  

कमेटियों का खेल: खत्म कब होगा?
डीसी सावंत कमेटी और खेमराज कमेटी ने 10 सालों तक कर्मचारियों को केवल दिलासा दिया।  
- हर बार नई कमेटी बनती है, लेकिन उनके फैसले कर्मचारी हित के खिलाफ रहते हैं।  
- कमेटी रिपोर्ट पर चर्चा करने और कर्मचारियों को शामिल करने के बजाय, वित्त विभाग का निर्णय कर्मचारियों पर थोप दिया जाता है।  
- यह एक ऐसा खेल बन गया है, जहां कर्मचारी केवल समय और उम्मीदें खोते हैं।  

लैब टेक्नीशियन संघ के सदस्यों का कहना है कि सरकार जानबूझकर इन कमेटियों के माध्यम से समस्या का समाधान टालती है। लैब टेक्नीशियन और पैरामेडिकल स्टाफ के साथ हो रहा अन्याय केवल उनकी मांगों को अनदेखा करना नहीं, बल्कि उनके कार्य का अपमान भी है। इन कर्मचारियों का योगदान केवल महामारी के समय ही नहीं, बल्कि हर दिन जीवनरक्षक साबित होता है। अगर सरकार ने जल्द ही इस मुद्दे का समाधान नहीं किया, तो यह सिर्फ कर्मचारियों के आक्रोश को बढ़ाएगा। सरकार से हमारी अपील है कि कर्मचारियों की मेहनत का सम्मान करें और उनकी मांगों पर ठोस कदम उठाएं।