अब बहुत हो चुका! अब बांग्लादेश को गंगाजल पिलाना बंद करो

पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। एक ओर पाकिस्तान के खिलाफ गुस्सा उबाल पर है, वहीं अब बांग्लादेश पर भी सवाल उठने लगे हैं। सोशल मीडिया से लेकर संसद तक एक ही आवाज़ गूंज रही है — क्या अब भी भारत को अपने संसाधन, खासकर जीवनदायिनी गंगा का जल, बांग्लादेश जैसे देशों को देना चाहिए?
निशिकांत दुबे का बड़ा बयान: "अब बांग्लादेश को गंगाजल नहीं"
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने अपने X (पूर्व ट्विटर) अकाउंट पर तीखा हमला बोलते हुए कहा:
"बांग्लादेश भी अब पाकिस्तान की भाषा बोलने लगा है। अब उसके लिए गंगा नदी का पानी बंद करने का समय आ गया है। पानी हमसे पीएगा और गाएगा पाकिस्तान से?"
उन्होंने एक अंग्रेजी वेबसाइट की रिपोर्ट का स्क्रीनशॉट साझा करते हुए बांग्लादेश के रवैये पर गहरी आपत्ति जताई और गंगाजल जैसे पवित्र संसाधन के वितरण पर पुनर्विचार की मांग की।
गंगाजल: दोस्ती का पुल या ऐतिहासिक भूल?
12 दिसंबर 1996 को भारत और बांग्लादेश के बीच गंगा जल बंटवारे की ऐतिहासिक संधि हुई थी।
तत्कालीन प्रधानमंत्री एच. डी. देवेगौड़ा और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इस संधि की प्रमुख शर्तें थीं:
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अगले 30 वर्षों तक बांग्लादेश को गंगा का जल उपलब्ध कराना।
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जल प्रवाह के वास्तविक आँकड़ों के आधार पर बंटवारा।
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संकट की स्थिति में बातचीत के ज़रिए समाधान।
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एक संयुक्त तकनीकी समिति द्वारा निगरानी।
पर आज, जब बांग्लादेश का झुकाव पाकिस्तान जैसे भारत विरोधी देशों की ओर दिखाई दे रहा है, देशवासी पूछ रहे हैं — क्या अब भी हमें इतनी उदारता बरतनी चाहिए?