अब ‘पराया’ नहीं, भारतीय हैं हम! जैसलमेर में 927 विस्थापितों को मिला नया जीवन!
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जैसलमेर: सपनों का भारत, अपनेपन का अहसास और सुरक्षित भविष्य की उम्मीद—ये भाव हर उस व्यक्ति की आंखों में झलक रहे थे, जिन्हें शुक्रवार को जैसलमेर में भारतीय नागरिकता का प्रमाण पत्र मिला। वर्षों की अनिश्चितता, असुरक्षा और संघर्ष के बाद, 927 पाक विस्थापित हिंदू परिवारों को आखिरकार भारत की नागरिकता मिल गई। यह ऐतिहासिक क्षण केवल एक कानूनी प्रक्रिया नहीं थी, बल्कि एक नए जीवन की शुरुआत थी।
अपने ही देश में पराए होने का दर्द
पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर और आसपास के इलाकों में हज़ारों पाक विस्थापित हिंदू परिवार दशकों से बस रहे हैं। वे पाकिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना, असुरक्षा और अपने अधिकारों के हनन के चलते भारत आए, लेकिन यहां भी उन्हें ‘शरणार्थी’ का तमगा मिला। बिना नागरिकता के ये लोग न तो सरकारी योजनाओं का लाभ ले सकते थे, न ही शिक्षा और रोजगार में आगे बढ़ सकते थे। 12 साल पहले पाकिस्तान से आई सबीरा ने अपनी पीड़ा को साझा करते हुए कहा, "भारत आने के बाद भी हमें ‘पाकिस्तानी’ कहकर बुलाया जाता था। यह सुनकर दिल दुखता था, लेकिन हमारे पास कोई और विकल्प नहीं था। आज जब हमें भारतीय नागरिकता मिल गई है, तो ऐसा लग रहा है जैसे नया जीवन मिल गया हो।"
इसी तरह नेतल नाम की महिला ने कहा, "हमारे बच्चों के लिए पढ़ाई सबसे बड़ी समस्या थी। बिना नागरिकता के वे स्कूल में दाखिला नहीं ले पाते थे, लेकिन अब वे सरकारी योजनाओं का लाभ उठा पाएंगे। आज हमें लग रहा है कि हम सच में भारत का हिस्सा हैं।"
भावनाओं से भरा नागरिकता समारोह
शुक्रवार को जैसलमेर के कलेक्ट्रेट स्थित डीआरडीओ भवन में आयोजित नागरिकता प्रमाण पत्र वितरण कार्यक्रम में जैसे ही 927 पाक विस्थापितों को नागरिकता प्रमाण पत्र सौंपे गए, पूरे हॉल में तालियों की गूंज सुनाई दी। जिन लोगों ने बरसों से इस दिन का इंतजार किया था, उनकी आंखों में आंसू थे—खुशी और राहत के आंसू। कार्यक्रम में जिला प्रशासन और जनगणना विभाग के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे। इस ऐतिहासिक क्षण पर कई विस्थापितों ने इसे अपने जीवन का ‘दूसरा जन्म’ कहा। नागरिकता प्राप्त करने वालों में बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं और युवा शामिल थे, जिनकी भावनाएं शब्दों से कहीं ज्यादा मुखर थीं। एक विस्थापित बुजुर्ग ने कहा, "अब हमारी आखिरी सांस भारत में ही होगी। यह हमारा घर है, और हमें अब कोई नहीं कह सकता कि हम बाहरी हैं।"
नंदिनी का सपना अब होगा पूरा
नंदिनी, जो बचपन में अपने माता-पिता के साथ पाकिस्तान से भारत आई थी, उसकी पढ़ाई नागरिकता न होने की वजह से अधर में अटकी थी। उसने दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई की, लेकिन आगे बढ़ने के लिए नागरिकता की जरूरत थी। नंदिनी ने खुशी जाहिर करते हुए कहा, "मैं टीचर बनना चाहती थी, लेकिन नागरिकता के बिना आगे की पढ़ाई नहीं कर सकती थी। अब मैं अपने सपने पूरे कर सकती हूं। आज मेरा सबसे बड़ा सपना सच हो गया है।"
CAA बना जीवन संवारने की उम्मीद
नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के तहत, 2014 या उससे पहले भारत आए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का प्रावधान किया गया था। इस कानून के तहत हज़ारों विस्थापितों को भारत की मुख्यधारा में शामिल होने का मौका मिल रहा है। जैसलमेर और जोधपुर जैसे शहरों में हज़ारों पाक विस्थापित हिंदू परिवार अब भी नागरिकता के इंतजार में हैं। लेकिन शुक्रवार को 927 लोगों को मिली नागरिकता ने बाकी लोगों के लिए भी एक नई उम्मीद जगाई है। एक विस्थापित ने भावुक होकर कहा, "हमने सालों तक अपने ही देश में खुद को पराया महसूस किया, लेकिन अब हम भारतीय नागरिक कहलाने पर गर्व महसूस कर रहे हैं।"
अब भविष्य होगा उज्ज्वल
नागरिकता मिलने के बाद इन परिवारों के लिए नई संभावनाओं के द्वार खुल गए हैं। अब वे—
अपने बच्चों को स्कूल-कॉलेज में दाखिला दिला सकते हैं
सरकारी योजनाओं का लाभ उठा सकते हैं
रोजगार के बेहतर अवसर प्राप्त कर सकते हैं
मकान और जमीन खरीद सकते हैं
स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ ले सकते हैं
भारत जैसा सुकून कहीं नहीं
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को तरह-तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है—धार्मिक भेदभाव, जबरन धर्म परिवर्तन, लड़कियों का अपहरण, रोजगार में भेदभाव और असुरक्षा। यही वजह है कि हज़ारों हिंदू परिवार भारत आने को मजबूर हुए। 12 साल पहले पाकिस्तान से आई सबीरा ने बताया, "वहां हमेशा डर लगा रहता था। यहां हम चैन से रह सकते हैं। भारत जैसी खुशी और सुकून कहीं और नहीं।"
सरकार और प्रशासन की भूमिका
राजस्थान सरकार और केंद्र सरकार ने नागरिकता प्रक्रिया को तेज़ करने के लिए विशेष प्रयास किए हैं। जैसलमेर और जोधपुर में नागरिकता प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए शिविर आयोजित किए गए, ताकि लोगों को दस्तावेज़ संबंधी दिक्कतों का सामना न करना पड़े। राज्य सरकार के एक अधिकारी ने कहा, "हमारी कोशिश यही है कि जितने भी योग्य विस्थापित हैं, उन्हें जल्द से जल्द नागरिकता मिले, ताकि वे सम्मानजनक जीवन जी सकें।"
नागरिकता मिलने के बाद भी चुनौतियां बाकी
हालांकि नागरिकता मिलने के बाद इन परिवारों की कई समस्याएं हल हो गई हैं, लेकिन अब भी कई चुनौतियां बाकी हैं।
रोजगार के अवसर बढ़ाने की जरूरत
शिक्षा की पहुंच को सुगम बनाना
स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार
सामाजिक समावेश को बढ़ावा देना
नागरिकता मिलने के बाद विस्थापितों का भारत के प्रति प्रेम और विश्वास और गहरा
भारत ने हमेशा विस्थापितों को अपनाया है, और शुक्रवार को जैसलमेर में यह बात फिर साबित हो गई। जो लोग सालों से ‘शरणार्थी’ के रूप में जीवन बिता रहे थे, वे अब गर्व से कह सकते हैं कि वे भारतीय नागरिक हैं।
एक बुजुर्ग ने खुशी जाहिर करते हुए कहा, "अब हमें कोई नहीं कह सकता कि हम पराए हैं। हम भारतीय थे, हम भारतीय हैं और हम भारतीय ही रहेंगे।"
यह दिन सिर्फ उन 927 लोगों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए ऐतिहासिक था। यह दिखाता है कि भारत एक ऐसा देश है जो अपने लोगों को अपनाता है, उन्हें नई पहचान और सम्मान देता है। जैसलमेर के इन विस्थापितों के चेहरे पर जो मुस्कान थी, वह बताने के लिए काफी थी कि वास्तव में भारत ही उनका अपना वतन है।