जयपुर में मोहर्रम, सोने और चांदी के ताजियों की शाही विरासत
आज मोहर्रम के पवित्र अवसर पर प्रदेश में ताजियों के जुलूस धूमधाम से निकाले जाएंगे. राजधानी जयपुर में इस मौके पर करीब 200 से ज्यादा ताजियों का जुलूस विभिन्न जगहों से होकर कर्बला पहुंचेगा, जहां इन ताजियों को सुपुर्द-ए-खाक किया जाएगा. इन ताजियों में से दो विशेष ताजिये जयपुर के इतिहास और विरासत का हिस्सा हैं, जो सोने और चांदी से बने हैं.
सन 1868 में जयपुर राजघराने ने मुस्लिम समाज को सोने से बना तामीर ताजिया गिफ्ट किया था. इस ताजिये में उस समय करीब 200 किलो शीशम की लकड़ी का इस्तेमाल हुआ था. तामीर ताजिये के खिदमतगार इमामुद्दीन बताते हैं कि यह ताजिया महावतों के मोहल्ले में रखा गया है और साल में सिर्फ दो बार निकाला जाता है- मोहर्रम के मौके पर और मेहंदी की रस्म के लिए, यह ताजिया जयपुर की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है. सिटी पैलेस में रखा दूसरा ताजिया, जो 10 किलो सोना और 60 किलो चांदी से बना है, जयपुर की शाही विरासत का हिस्सा है. इसे 1860 में राजा रामसिंह ने अपनी बीमारी से स्वस्थ होने के बाद बनवाया था.
अब्दुल सत्तार की तीन पीढ़ियां इस ताजिये की देखभाल कर रही हैं. मोहर्रम से पहले पांच दिन तक यह ताजिया त्रिपोलिया गेट पर रखा जाता है और मोहर्रम के दिन इसे 21 हाथियों की सलामी दी जाती है. इस ताजिये को सबसे पहले उठाया जाता है और यह जुलूस में सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखता है. इन ताजियों का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व जयपुर की धरोहर को समृद्ध करता है. मोहर्रम के दिन इन ताजियों की शाही झलक और उनका जुलूस देखना अपने आप में एक अनूठा अनुभव है. यह ताजिये न सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक हैं, बल्कि जयपुर की समृद्ध विरासत और इतिहास की झलक भी पेश करते हैं.