पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार के आरक्षण सीमा बढ़ाए जाने के फैसले को किया खारिज
पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार के शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण सीमा को 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी किए जाने के फैसले को खारिज कर दिया है. यह फैसला गुरुवार को चीफ जस्टिस केवी चंद्रन की बेंच ने सुनाया. गौरव कुमार और अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह निर्णय लिया गया. बिहार सरकार ने जातीय गणना की सर्वे रिपोर्ट के बाद SC-ST, OBC और EBC के लिए आरक्षण सीमा को बढ़ाने का निर्णय लिया था, जिससे कुल आरक्षण 65 फीसदी हो गया था. इसके अलावा आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण जोड़कर कुल कोटा 75 प्रतिशत कर दिया गया था.
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि आरक्षण का आधार सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ापन होना चाहिए, न कि केवल जातीय आबादी। बिहार सरकार का यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 16(1) और 15(1) का उल्लंघन करता है. अनुच्छेद 16(1) सभी नागरिकों को रोजगार के मामलों में समानता का अवसर प्रदान करता है, जबकि अनुच्छेद 15(1) किसी भी प्रकार के भेदभाव पर रोक लगाता है. पटना हाईकोर्ट ने इन तर्कों को स्वीकार करते हुए राज्य सरकार के आरक्षण सीमा बढ़ाए जाने के फैसले को असंवैधानिक करार दिया और इसे खारिज कर दिया. चीफ जस्टिस केवी चंद्रन की बेंच ने 11 मार्च को इस मामले में सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था, जो अब सुनाया गया है. इस फैसले के बाद राज्य सरकार को अपनी आरक्षण नीति पर पुनर्विचार करना होगा. सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनकी आरक्षण नीति संविधान के अनुरूप हो और सभी नागरिकों के लिए समानता और न्याय का पालन हो सके.