45 साल की दुश्मनी के बद अब होगी जंग ? ईरान और इजरायल के रिश्तों की क्या है पूरी कहानी?
जंग की ख़बरों के बीच आज हम इजराइल और ईरान के बीच तनाव के बारे में बात करेंगे जाहिर है कि इजराइल और ईरान के बीच लगातार दूरी बढ़ती ही जा रही है.यह जंग दुनिया को चौंका देने वाली है. क्योंकि जो आज इस वक्त एक दूसरे से खून के प्यासे हैं. उनके रिश्तों की शुरुआत कभी दोस्ती से हुई थी. दोस्ती 31 सालों की और दुश्मनी 45 साल की ये दुश्मनी अब भी जारी है. अब तो यह कहना भी गलत नहीं होगा की दोनों के बीच जंग हो सकती है.
इसकी शुरूआत भी हो चुकी है. वहीं इस जंग से पूरी दुनिया पर थर्ड वर्ल्ड वार का खतरा भी मंडरा रहा है. दोनों देशों के एक दूसरे पर किए जा रहे हमलों का और देशों पर क्या असर होगा इसका तो शायद ही किसी को कोई अंदाजा हो. आज हम इनकी दोस्ती से लेकर दूश्मनी तक के सफर के बारे में बात करेंगे. 1 अप्रैल को इजराइल ने सीरिया की राजधानी दमिश्क में ईरानी एंबेसी के पास हमला किया था.और फिर ईरान ने इसका जवाब देने की धमकी दे दी. और लगभग 12 दिनों बाद, ही ईरान ने इजराइल पर एक बड़ा हमला कर दिया. ईरान ने इजराइल पर 300 से ज्यादा ड्रोन और मिसाइल से हमले किया. लेकिन इस हमले में इजराइल को कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ. इसके बाद, फिर इजराइल ने भी ईरान पर हमला कर दिया. जिसमें ईरान के कई ठिकानों को निशाना बनाया गया. हालांकि, ईरान ने अभी तक इस हमले में कोई कार्रवाई नहीं की है. ईरान का दावा है. कि ज्यादातर ड्रोन और मिसाइल को उसने मार गिराया. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि ईरान ने इजराइल पर जवाबी पलटवार क्यों नहीं किया.इजराइली हमले को लेकर ईरान के विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दोल्लाहियन ने कहा है कि हमले में अभी तक इजराइल का सीधा हाथ नहीं मिला है.इसलिए ईरान ने कोई कार्रवाई नहीं की है. उन्होंने कहा कि अगर इजराइल ने कोई दुस्साहस किया तो करारा जवाब जरूर मिलेगा. आपको बता दें कि इजराइल ने शुक्रवार की सुबह ईरान के 9 ठिकानों को मिसाइल और ड्रोन से निशाना बनाया था. इजराइल ने ईरान के उस शहर पर हमला किया था जो जंग के लिहाज से उसके लिए बेहद अहम है. इजराइल ने ईरान के इस्फहान प्रांत को टारगेट किया. क्या आप जानते है तेहरान और मशहद के बाद इस्फहान ईरान का तीसरा सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला शहर है. इस्फहान को मिलिट्री कैपिटल भी कहा जाता है.
इस्फहान में ईरान की कई न्यूक्लियर साइट्स मौजूद हैं. वहीं उस रात ईरान के इसराइल पर ड्रोन और मिसाइल से किए गए हमले ने सबकी नज़रें अरब दुनिया के आसमान पर टिका दीं. पिछले छह महीनों से इसराइल-हमास युद्ध के कारण पूरी दुनिया की नज़रें अरब क्षेत्र पर हैं...दुनिया भर में ईरान के इस हमले को बहुत ध्यान से देखा जा रहा है. रात में अलग-अलग समय पर ये हमले किए गए. इसराइल इस हमले के ख़िलाफ़ अपने सहयोगियों की मदद से अपनी रक्षा करने में कामयाब रहा. वहीं इसराइल की ओर से जारी बयान में बताया गया कि कुछ ड्रोन और मिसाइल उसने अपनी आधुनिक सुरक्षा प्रणाली की बदौलत मार गिराए. जबकि कुछ को इसराइल की सीमा में आने से पहले ही अमेरिका समेत दूसरे सहयोगी की मदद से गिरा दिया गया. अमेरिका, ब्रिटेन और फ़्रांस तीनों ही पश्चिमी देश हैं, लेकिन मध्य पूर्व के एक मुस्लिम देश जॉर्डन की ओर से ईरान के ड्रोन और मिसाइल हवा में मार गिराने की घटना के बाद न केवल पाकिस्तान बल्कि दुनिया के अलग-अलग मुस्लिम देशों में सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने हैरानी जताई है. वहीं सूत्रों के अनुसार भारत के लिए ये स्थिति और परेशानी वाली हो सकती है. क्योंकि ईरान और इसराइल दोनों से भारत के अच्छे संबंध हैं.साथ ही पश्चिमी एशियाई देशों में अच्छी-खासी तादाद में भारतीय भी रहते हैं. उनका मानना है कि ईरान और इसराइल का संघर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित कर सकता है.
ईरान के हमले के बाद ही भारत के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर के चिंता जताते हुए दोनों मुल्क़ों से कूटनीतिक रास्ते पर चलने के लिए कहा था. भारत ने अपने नागरिकों के लिए ट्रैवल एडवाइज़री जारी की थी. और इन दोनों देशों की यात्रा नहीं करने के लिए कहा था. ईरान और इसराइल के संघर्ष के बीच भारत की सबसे बड़ी चुनौती इन देशों और पश्चिमी एशिया के अन्य देशों में रह रहे अपने लाखों नागरिकों की सुरक्षा है. भारत सरकार ने ट्रैवल एडवाइज़री जारी कर के इसराइल और ईरान की यात्रा करने को लेकर कोई पाबंदी नहीं लगाई है लेकिन एहितायतन नागरिकों से यात्रा करने से बचने को कहा है. इस समय इसराइल में करीब 18 हज़ार भारतीय हैं जबकि ईरान में पाँच से 10 हज़ार भारतीय रह रहे हैं. अब बात करे कैसे दोनों की दोस्ती हुई थी . और कैसे दोनो एक दूसरे के दूश्मन बन गए. तो बात है सन 1948 की इस समय इजरायल का काफी वजूद था. लेकिन वजूद में आने के बाद उसे काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा. दुनिया के ज्यादातर देशों ने तब इजरायल को मान्यता देने से ही इनकार कर दिया था, खास कर मिडिल ईस्ट के मुस्लिम देश इजरायल के सख्त खिलाफ थे. लेकिन तब ईरान ने इजरायल को मान्यता दी थी. तब ईरान में यहुदियों की भी अच्छी तादाद थी. मान्यता मिलने के बाद इजरायल ने ईरान को हथियारों की सप्लाई शुरू की और ईरान ने बदले में इजरायल को तेल देना चालू किया. रिश्ते कुछ इतने अच्छे हो गए कि दोनों देशों की खुफिया एजेंसियों ने टेक्नोलॉजी से लेकर ज्वाइंट ट्रेनिंग तक किए. आम तौर पर दो देशों के बीच विवाद तभी होती है, जब दोनों की सीमाएं एक दूसरे से लगती हों और उनमें अपने-अपने एरिया समेत कई बातों को लेकर अनबन हो. लेकिन ईरान और इज़रायल के बीच ऐसा कुछ भी नहीं था. लेकिन ईरान में इस्लामिक क्रांति की शुरुआत क्या हुई, इजरायल के साथ ईरान के रिश्ते खराब होने लगे. खुमैनी ने अमेरिका और इजरायल को शैतानी देश कहना शुरू कर दिया. और मुस्लिम राष्ट्र की मांग उठने लगी. 1979 में ईरान पूरी तरह से मुस्लिम राष्ट्र बन चुका था और इसी के साथ इजरायल के साथ ईरान के रास्ते अलग हो गए.
दुश्मनी की लकीर लंम्बी होती चली गई. इस्लामिक क्रांति के बाद दोनों देशों के बीच आवाजाही बंद हो गई. एयर रूट को पूरी तरह से बंद कर दिया गया. दोनों देशों के कूटनीतिक संबंधों पर भी विराम लग गया... तेहरान के इजरायली दूतावास को फिलिस्तीनी दूतावास में बदल दिया गया. और फिर दोनों ही देशों ने अब एक दूसरे को मान्यता देना ही बंद कर दिया. आगे चल कर रिश्ते और खराब हुए. जब ईरान ने इजरायल के विरोधी सीरिया, यमन और लेबनान जैसे देशों को हथियारों की सप्लाई शुरू कर दी. अस्सी के दशक में इस्लामिक जेहाद नाम के आतंकी संगठन का ईरान ने खुल कर सपोर्ट किया. जो फिलिस्तीन के नाम पर ईरान से टकरा रहा था. और अभी तक दुश्मनी की कहानी लगातार जारी है.दोनों के बीच में टकराव बढ़ता ही जा रहा है.अगर अब दोनों के बीच में तनाव और बढ़ता है, तो निश्चित तौर पर भारत के लिए परेशानी हो सकती है. अब अगर ईरान और इसराइल के बीच जंग जैसे हालात बने तो फिर भारत के लिए लंबे समय तक तटस्थता वाली नीति पर बने रहना भी मुश्किल हो सकता है. अब ऐसे में भारत का क्या कदम होगा.सबके मन में यह भी सवाल है..की अगर भारत को ईजराइल और ईरान में से किसी एक को चुनना पड़ा तो आखीर किसको चुनेगा.क्या भारत दोनों से अपने समब्न्ध अच्छे रख पाएगा. खैर यह तो आने वाला समय ही बता पाएगा.