अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी- भारतीय दृष्टि से विधि एवं न्याय पर परिचर्चा का भव्य आरंभ
राजस्थान विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग एवं पंचवर्षीय विधि महाविद्यालय के तत्वावधान में "भारतीय ज्ञान परम्परा में विधि एवं न्याय की अवधारणा" विषयक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन समारोह आयोजित हुआ। इस संगोष्ठी का उद्देश्य वर्तमान विधिक विकास एवं भारतीय न्याय संहिता, 2023 के आलोक में विधि एवं न्याय की अवधारणाओं पर भारतीय दृष्टिकोण से चर्चा करना था। कार्यक्रम में संयुक्त राज्य अमेरिका, नेपाल समेत भारत के 22 राज्यों से 150 विद्वान एवं राजस्थान से 500 से अधिक विद्वानों ने भाग लिया।
विशिष्ट अतिथियों के उद्बोधन
उद्घाटन सत्र में प्रमुख अतिथि के रूप में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. सुरेन्द्र कुमार ने भारत की प्राचीन न्याय व्यवस्था एवं दंड नीति पर मनुस्मृति के उद्धरणों के माध्यम से प्रकाश डाला। उन्होंने मनुस्मृति एवं जाति व्यवस्था से जुड़ी भ्रांतियों का खंडन भी किया। उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय के प्रो. रघुनाथ घोष ने बताया कि प्राचीन भारतीय विधि व्यवस्था में विधि का अर्थ न केवल वैधानिकता बल्कि नैतिकता से भी था। उन्होंने मानव जीवन को अर्थवान बनाने में विधि की भूमिका पर चर्चा की।
मुख्य अतिथि का वक्तव्य
मुख्य अतिथि राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाधीश अशोक कुमार जैन ने अपने वक्तव्य में भारतीय संविधान एवं विधि संहिता के विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से बताया कि भारतीय विधि के अनेक तत्व भारतीय परम्परा से ही उद्भूत हैं। उन्होंने कहा, “भारतीय संविधान का प्रत्येक तत्त्व भारतीय परम्परा से आया है।” न्यायमूर्ति जैन ने यह भी कहा कि न्यायलय में याचिका को अंतिम उपाय के रूप में देखा जाना चाहिए और मध्यस्थता व अनौपचारिक समाधान के प्रयासों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
कुलपति का संबोधन
राजस्थान विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. अल्पना कटेजा ने प्राचीन भारतीय विचारकों बृहस्पति, कात्यायन, शुक्र एवं कामंदक के उद्धरणों से भारतीय न्याय एवं दंड प्रणाली के प्राचीन स्वरूप पर व्याख्यान दिया। उन्होंने विद्वानों के समक्ष अनेक जिज्ञासाएं प्रस्तुत करते हुए पूछा कि प्राचीन न्यायव्यवस्था के स्वर्णिम काल में किस प्रकार परिवर्तन हुआ।
संगोष्ठी का परिचय एवं समापन
संयोजक प्रो. राजेश कुमार ने सभी विद्वानों एवं अतिथियों का स्वागत किया। दर्शनशास्त्र विभाग के डॉ. अनुभव वार्ष्णेय ने संगोष्ठी के उद्देश्यों एवं विचारणीय विषयों का परिचय कराया। समापन में पंचवर्षीय विधि महाविद्यालय के निदेशक डॉ. अखिल कुमार ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। संगोष्ठी के पहले दिन 100 से अधिक विद्वानों का सम्मान किया गया एवं चार सत्रों में 200 शोध पत्र प्रस्तुत किए गए।