कुम्हार समाज ने सरकार से की मदद की गुहार, मिट्टी के दीये और बर्तनों को बढ़ावा देने की मांग
जयपुर के आसलपुर गांव में कुंभकार समाज के प्रमुख सदस्य, गोपाल लाल और राधेश्याम प्रजापत ने मिट्टी के दीये और बर्तनों को बढ़ावा देने के लिए सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है। उन्होंने चिंता जताई कि आर्टिफिशल दीयों और चाइनीज लाइटों के कारण पारंपरिक मिट्टी के दीयों की बिक्री में भारी गिरावट आई है। यह गिरावट सीधे कुम्हार समुदाय की आजीविका को प्रभावित कर रही है और उनके पारंपरिक व्यवसाय पर संकट खड़ा हो गया है।
दीपावली का त्यौहार कुम्हारों के लिए हमेशा से आमदनी का बड़ा जरिया रहा है, क्योंकि इस दौरान मिट्टी के दीयों की बिक्री चरम पर होती है। लेकिन आधुनिक प्लास्टिक के दीये और चाइनीज लाइटों की चमक ने इस मांग को काफी हद तक घटा दिया है। राधेश्याम प्रजापत बताते हैं कि पहले 50-60 लोग इस पेशे से जुड़े होते थे और काम में जुटे रहते थे, पर आज बहुत ही कम लोग इस पारंपरिक व्यवसाय से जुड़े हैं।
गोपाल लाल और राधेश्याम प्रजापत का कहना है कि मिट्टी का काम कठिन और महंगा है। काली मिट्टी दूर के क्षेत्रों से लानी पड़ती है, जिसमें समय और पैसा दोनों खर्च होते हैं। कुम्हार समाज ने सरकार से गुजारिश की है कि मिट्टी पर सब्सिडी दी जाए और साथ ही चाक व लोन की सुविधा उपलब्ध कराई जाए ताकि यह काम सुचारू रूप से चल सके। इसके अलावा, मिट्टी के बर्तनों का उचित मूल्य निर्धारण करने की भी मांग की गई है ताकि उनकी मेहनत का सही मुआवजा मिल सके।
राधेश्याम प्रजापत ने उम्मीद जताई कि यदि सरकार उनकी मांगों पर ध्यान देती है, तो आने वाली पीढ़ी को इस परंपरा को जारी रखने का प्रोत्साहन मिलेगा। कुम्हार समाज चाहता है कि मिट्टी के बर्तनों और दीयों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए सरकार ठोस कदम उठाए ताकि यह कला और परंपरा जीवित रह सके।