जवाहर कला केन्द्र मंच पर बिखरी आदिवासी संस्कृति की छटा

जवाहर कला केन्द्र मंच पर बिखरी आदिवासी संस्कृति की छटा

जवाहर कला केंद्र की ओर से शुक्रवार को आदिवासी दिवस के अवसर पर आदिवासी महोत्सव का आयोजन किया गया। इस मौके पर 65 कलाकारों ने आदिवासी संस्कृति के सौंदर्य से सराबोर करने वाली 
मनमोहक नृत्य व गायन की प्रस्तुति दी। कला प्रेमियों ने आदिवासी गीत गायन, हेला ख्याल, कन्हैला ख्याल, पद दंगल गायन प्रस्तुति का लुत्फ उठाया। 

पारंपरिक परिधानों में तैयार होकर कलाकार केन्द्र के डोम एरिया में एकत्रित हुए। यहां उन्होंने वाद्य यंत्रों की धुन के साथ प्रस्तुति की झलक दिखाई। इसके बाद सभी रंगायन पहुंचे। यहां कलाकारों ने सर्वप्रथम आदिवासी गीत गायन की प्रस्तुति दी। इसके बाद फाल्गुन मास में किया जाने वाला जाड़ोल गाँव के प्रसिद्ध नृत्य घूमरा नृत्य ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा।  


इसके बाद कन्हैया दंगल और हेला ख्याल प्रस्तुत किया। इस दौरान उन्होंने अपने अंदाज में 'श्यामा और गोपाल' की प्राचीन कथा का चौपाईयों में वर्णन किया। यह कथा एक भाई और बहन की कथा है जिसका मर्म है कि श्यामा मेले में जाने के लिए अपनी भाभी से ओढ़नी मांगती है और उसकी भाभी इसी शर्त पर देती है कि उसमें कोई दाग लगा तो वह ओढ़नी उसी के खून से रंगवाएगी। आखिरकार चुंदड़ी मैली हो जाती है और श्यामा का भाई गोपाल बहन का सिर काटकर ओढ़नी रंगता है। कुछ ही देर में उसके भाई गोपाल की भी मृत्यु हो जाती है। चूंकि श्यामा चौथ माता की भक्त थी तो मां अवतरित होकर उसे पुनर्जीवित करती हैं लेकिन फिर भी वह वरदान स्वरूप भाई के लिए जीवन दान मांगती है।